Selected Plays for
3rd National theatre Festival.
11 October 2025
प्रस्तुतकर्ता - ड्रामा टॉकीज़,मुम्बई | नाटक - आँख मिचोली
निर्देशक- विकास बहारी
समूह- प्रिज़्म थिएटर सोसाइटी प्रोडक्शन
जंगली दुनिया का एक उस्ताद, अपनी चतुर चुटकुलों से महिलाओं को लुभाने वाला, घर पर, वह खुद को अपनी पत्नी के चाबुक की दया पर पाता है। अपने नाम के विपरीत, अजय ईर्ष्या और पाखंड में अपना होश खो बैठा है। जब उसकी मुलाकात कॉलेज की एक पुरानी प्रेमिका, नैना से होती है, तो वे तुरंत घुल-मिल जाते हैं। हालाँकि, एक समस्या है: नैना की शादी एक सीआईडी अधिकारी से हुई है, जिसे शक करने की आदत है। इसमें अजय की बेहद शर्मीली पत्नी संध्या को भी जोड़ दें, और आपको वह हँसी का दंगल "आँख मिचोली" मिल जाएगा।
12 October 2025
नाटक - डेज़र्ट ब्लूम
नाट्यांतर, संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन - महादेव सिंह लखावत
समूह- मरुधरा थिएटर कंपनी, जयपुर
"डेज़र्ट ब्लूम" महिलाओं की भावनाओं की एक संगीतमय कहानी है। संगीत और नृत्य के माध्यम से वे अपनी दबी हुई भावनाओं और अजीबोगरीब मानवीय इच्छाओं को व्यक्त करती हैं, प्रकृति से गहरा जुड़ाव और आज़ादी की चाहत प्रकट करती हैं। यह विजयदान देथा की कहानी - "लाजवंती" पर आधारित है। यह नाटक राजस्थान के एक अर्ध-रेगिस्तानी इलाके में आधारित है, जहाँ "पनिहारन" दूर-दराज के स्रोतों से रोज़ाना पानी लाकर अपने परिवारों का भरण-पोषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे पात्र पितृसत्तात्मक व्यवस्था की सीमाओं के भीतर रह रहे हैं, उनके जीवन अथक संघर्षों, गहरी अंतर्निहित जिज्ञासा, छिपी इच्छाओं और अनदेखे दर्द की यात्रा से आकार लेते हैं। यहाँ की महिलाएँ सामाजिक व्यवस्था से बंधी हुई हैं, और उन्हें अपने सपनों को व्यक्त करने या अपनी व्यक्तिगत पहचान को तलाशने की आज़ादी शायद ही कभी मिलती है।
13 October 2025
जयहिन्द कॉलेज, बम्बई | नाटक - रामायण
परिकल्पना एवं निर्देशन - शांति वर्द्धन
समूह - रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप, भोपाल
प्रथम प्रस्तुति 6 जनवरी 1953 जयहिन्द कॉलेज, बम्बई
रामायण कठपुतली नृत्य-नाट्य की परिकल्पना में कठपुतली की राजस्थानी परिपाटी,पूर्व-पष्चिम-उत्तर-दक्षिण प्रांतों के लोक-नृत्य,लोक-संगीत, शास्त्रीय नृत्यों और षास्त्रीय अभिनटन शैलियों का समाहार हुआ है। इसलिए यह संरचना भारतीय संस्कृति का सांगोपांग निरूपण करने में सक्षम है। बैले के मुखौटों की चित्ताकर्षक आयताकार ज्यामितीय संरचना कठपुतलियों के मानवीयकरण को ज्यादा विष्वनीय बनाती है। बैले की देहगतियाँ कठपुतली शैली में निबद्ध हैं एक ग्राम्य मेले में कठपुतली के खेल के साथ इस बैले की संरचना की गयी है। कथा तत्व की निरन्तरता के लिए गुजराती शैली के कथकों का प्रयोग सूत्रधार के रूप में दिया गया है। रामकथा के सर्वसमावेषी स्वरूप को कायम रखते हुए यह बेैले भारत की भावनात्मक एकता और सांस्कृतिक विपुलता का भी परिचायक है।
14 October 2025
नाटक - कर्ण गाथा
परिकल्पना एवं निर्देशन - ओएसिस सउगाइज़म
समूह - भारतेन्दु नाट्ध अकादमी रंगमण्डल, लखनऊ
नाटक “कर्ण गाथा” गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर के कर्ण कुंती संवाद से प्रेरित है| हमने| पूरे महाकाव्य में कर्ण के चरित्र को देवताओं के देवता व सूर्य के प्रतिद्वन्दी इंद्र द्वारा चुनौती दी गयी है | कुंती व इंद्र से जन्मा अर्जुन वह योद्धा है जिसका सामना कर्ण को अपनी मृत्यु के समय करना पड़ा था, जब परशुराम के श्राप से उसके दिव्य शस्त्र बेकार हो गये थे और एक अन्य ब्राह्मण के श्राप के चलते उसके रथ का पहिया युद्ध के मैदान में धस गया था | नाटक में बलिदान, मृत्यु और वीरता के बीच अन्तर्सम्बन्धों का प्रदर्शन इस विचार को दर्शाता है कि नश्वरता और अनश्वरता के बीच की बाधा को पार करके मिलने वाली स्वतंत्रता का आनन्द लेने के लिए व्यक्ति को वीरतापूर्वक मृत्यु का वरण करना चाहिए| इस प्रकार ये नाटक ऐसे महाकाव्यात्मक नायक को सामने लाता है जो महाकाव्यात्मक वीरता के विरोधाभासों का प्रतिक है, जिसे भाग्य, कर्तव्य, कर्म, शाप और दैवीय हस्तक्षेप की अनिवार्यताओं द्वारा सीमित असाधारण व्यक्तिगत अखण्डता और प्रयास के रूप में व्यक्त किया जाता है|
15 October 2025
रंग विनयक रंगमंडल, बरेली | स्वांग - जस की तस
नाट्यांतर, संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन - अक्षय सिंह ठाकुर
समूह - रंगाभरण थिएटर ग्रुप, जबलपुर
नाटक "जस की तस": विजयदान देथा की प्रसद्ध कहानी "ठाकुर का रूठना" पर आधारित।
यह एक हास्यपूणर्य और पूणर्यतः संगीतमय प्रस्तुती है। कहानी एक ठाकुर (जमींदार) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अक्सर बिना किसी ठोस कारण के नाराज़ हो जाता है और तर्कहीन निर्णय लेता है। कई गाँवों का शासक होने के नाते, सभी ग्रामीणों को उसकी आज्ञा का पालन करना पड़ता है। इस बार, ठाकुर आदेश देता है कि गाँव के सभी पानी से भरे कुओं को रेत से भर दिया जाए, जिससे ग्रामीणों में हाहाकार मच जाता है। यह नाटक समाज की विभन्न समस्याओं पर एक तीखा व्यंग्य और आलोचना प्रस्तुत करता है। दर्शक इसे देखकर हँसते हैं, लेकन हँसी के बीच वे गहरे सामािजिक संदेश भी आत्मसात करते हैं। "ठाकुर का रूठना" इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि स्वांग जैसी लोक नाट्य परंपराएँ मनोरंजन के साथ-साथ समाज को शक्षत और जागरूक करने का कार्य भी करती हैं।